देवी चालीसा संग्रह | Unique Devi Chalisa Collection @ 🔱 VrandAstrA 🔱


देवी चालीसा संग्रह  

Unique Devi Chalisa Collection @ 

🔱 VrandAstrA 🔱

देवी चालीसा संग्रह | Unique Devi Chalisa Collection @ 🔱 VrandAstrA 🔱


देवी चालीसा संग्रह :


भक्ति और धर्म के प्रचारक


परिचय:


देवी-देवताओं की पूजा हमारे संस्कार और संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं।

भारतीय जीवन में देवियों की उपासना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वे हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की दूत होती हैं।

भक्ति और धर्म का संगम, "देव चालीसा संग्रह" एवं "देवी चालीसा संग्रह", भारतीय जीवन के एक महत्वपूर्ण अंग को दर्शाता है।


खण्ड 1:


देवी चालीसा संग्रह का महत्व:


देवी चालीसा संग्रह का महत्व बहुत अधिक है। 

यह हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है जो हमें दिव्यता की ओर ले जाता है। इसका पाठ करना हमारी मनोदशा को शुद्ध, सकारात्मक और शांत बनाता है जो हमें अपने दैनिक जीवन में उन्नति और सफलता प्रदान करता है।

इनका पाठ करना हमें शक्ति और उत्साह प्रदान करता है जो हमें अपनी मनोदशा को संतुलित रखने में मदद करता है। इससे हमें आत्मविश्वास मिलता है और हम अपने लक्ष्यों के प्रति उत्सुकता से निरंतर काम करते रहते हैं।

देवी चालीसा संग्रह में शामिल देवताओं की कई गुणवत्ताएं होती हैं जो हमें उनसे सीखने को मिलती हैं। ये गुणवत्ताएं हमें समाधान, सहनशीलता, उदारता, निष्ठा, धैर्य, त्याग, और संकट के समय में स्थिरता आदि सिखाती हैं।


अंततः, देवी चालीसा संग्रह का पाठ करना हमारे जीवन में एक सकारात्मक बदलाव लाता है। यह हमारे अंतरंग और बाहरी जीवन, दोनों पर प्रभाव डालता है। इससे हमें दिव्य और सच्चे जीवन की ओर जाने की प्रेरणा मिलती है। 

अतिरिक्त रूप से, इनके पाठ से हम दुःख, रोग, संकट और दुर्भाग्य को दूर करने की आशा करते हैं। यह हमें आशा दिलाता है कि हमें संकट के समय अपने आस-पास कुछ दिव्य शक्तियों का सहारा लेना चाहिए।

इसलिए, देवी चालीसा संग्रह धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो हमें सद्गुणों से सम्पन्न और देवताओं की कृपा से संपूर्ण बनाता है।


खण्ड 2 :


देवी चालीसा संग्रह की कुछ मुख्य विशेषताएं: 


देवी चालीसा संग्रह की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:


आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण:  यह संग्रह एक धार्मिक लेख है, जो आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें विभिन्न देवियों के नाम और उनकी महिमा वर्णित है।


दिव्यता को बढ़ावा देने वाला:  यह संग्रह हमें दिव्यता को समझने और उसे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। इसके अलावा, यह हमें दिव्य शक्तियों और कृपाओं के लिए प्रार्थना करने की सलाह भी देता है।


संकटों से निजात प्रदान करता है:  इस संग्रह का पाठ करने से जीवन में उत्पन्न होने वाले संकटों से मुक्ति प्राप्त होता है।


सुख-शांति और समृद्धि के लिए उपयोगी:  इस संग्रह के पाठ से सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


संस्कृति और भारतीय धर्म के प्रति आकर्षण बढ़ाता है: देवी चालीसा संग्रह, भारतीय धर्म और संस्कृति का महत्त्वपूर्ण भाग है।


खण्ड 3:


विभिन्न देवियों की चालीसा



मां दुर्गा देवी चालीसा 

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🔱 चौपाई 🔱


नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।

नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥


निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।

तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥


शशि ललाट मुख महाविशाला ।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥


रूप मातु को अधिक सुहावे ।

दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४


तुम संसार शक्ति लै कीना ।

पालन हेतु अन्न धन दीना ॥


अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥


प्रलयकाल सब नाशन हारी ।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥


शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८


रूप सरस्वती को तुम धारा ।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥


धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।

परगट भई फाड़कर खम्बा ॥


रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥


लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।

श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२


क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।

दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥


हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।

महिमा अमित न जात बखानी ॥


मातंगी अरु धूमावति माता ।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥


श्री भैरव तारा जग तारिणी ।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६


केहरि वाहन सोह भवानी ।

लांगुर वीर चलत अगवानी ॥


कर में खप्पर खड्ग विराजै ।

जाको देख काल डर भाजै ॥


सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।

जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥


नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।

तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०


शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।

रक्तबीज शंखन संहारे ॥


महिषासुर नृप अति अभिमानी ।

जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥


रूप कराल कालिका धारा ।

सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥


परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।

भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४


अमरपुरी अरु बासव लोका ।

तब महिमा सब रहें अशोका ॥


ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।

तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥


प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥


ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।

जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८


जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥


शंकर आचारज तप कीनो ।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥


निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥


शक्ति रूप का मरम न पायो ।

शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२


शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।

जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥


भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥


मोको मातु कष्ट अति घेरो ।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥


आशा तृष्णा निपट सतावें ।

मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६


शत्रु नाश कीजै महारानी ।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥


करो कृपा हे मातु दयाला ।

ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥


जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥


श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।

सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४०


देवीदास शरण निज जानी ।

कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥


⚜️दोहा⚜️


शरणागत रक्षा करे,

भक्त रहे नि:शंक ।

मैं आया तेरी शरण में,

मातु लिजिये अंक ॥


🏵


मां विंध्यवासिनी देवी चालीसा 

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⚜️दोहा⚜️


नमो नमो विन्ध्येश्वरी,

नमो नमो जगदम्ब ।

सन्तजनों के काज में,

करती नहीं विलम्ब ॥


🔱 चौपाई 🔱


जय जय जय विन्ध्याचल रानी।

आदिशक्ति जगविदित भवानी ॥


सिंहवाहिनी जै जगमाता ।

जै जै जै त्रिभुवन सुखदाता ॥


कष्ट निवारण जै जगदेवी ।

जै जै सन्त असुर सुर सेवी ॥


महिमा अमित अपार तुम्हारी ।

शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥


दीनन को दु:ख हरत भवानी ।

नहिं देखो तुम सम कोउ दानी ॥


सब कर मनसा पुरवत माता ।

महिमा अमित जगत विख्याता ॥


जो जन ध्यान तुम्हारो लावै ।

सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥


तुम्हीं वैष्णवी तुम्हीं रुद्रानी ।

तुम्हीं शारदा अरु ब्रह्मानी ॥


रमा राधिका श्यामा काली ।

तुम्हीं मातु सन्तन प्रतिपाली ॥


उमा माध्वी चण्डी ज्वाला ।

वेगि मोहि पर होहु दयाला ॥ 10


तुम्हीं हिंगलाज महारानी ।

तुम्हीं शीतला अरु विज्ञानी ॥


दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता ।

तुम्हीं लक्ष्मी जग सुख दाता ॥


तुम्हीं जाह्नवी अरु रुद्रानी ।

हे मावती अम्ब निर्वानी ॥


अष्टभुजी वाराहिनि देवा ।

करत विष्णु शिव जाकर सेवा ॥


चौंसट्ठी देवी कल्यानी ।

गौरि मंगला सब गुनखानी ॥


पाटन मुम्बादन्त कुमारी ।

भाद्रिकालि सुनि विनय हमारी ॥


बज्रधारिणी शोक नाशिनी ।

आयु रक्षिनी विन्ध्यवासिनी ॥


जया और विजया वैताली ।

मातु सुगन्धा अरु विकराली ॥


नाम अनन्त तुम्हारि भवानी ।

वरनै किमि मानुष अज्ञानी ॥


जापर कृपा मातु तब होई ।

जो वह करै चाहे मन जोई ॥ 20


कृपा करहु मोपर महारानी ।

सिद्ध करहु अम्बे मम बानी ॥


जो नर धरै मातु कर ध्याना ।

ताकर सदा होय कल्याना ॥


विपति ताहि सपनेहु नाहिं आवै ।

जो देवीकर जाप करावै ॥


जो नर कहँ ऋण होय अपारा ।

सो नर पाठ करै शत बारा ॥


निश्चय ऋण मोचन होई जाई ।

जो नर पाठ करै चित लाई ॥


अस्तुति जो नर पढ़े पढ़अवे ।

या जग में सो बहु सुख पावे ॥


जाको व्याधि सतावे भाई ।

जाप करत सब दूर पराई ॥


जो नर अति बन्दी महँ होई ।

बार हजार पाठ करि सोई ॥


निश्चय बन्दी ते छुट जाई ।

सत्य वचन मम मानहु भाई ॥


जापर जो कछु संकट होई ।

निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ॥ 30



जा कहँ पुत्र होय नहिं भाई ।

सो नर या विधि करे उपाई ॥


पाँच वर्ष जो पाठ करावै ।

नौरातन महँ विप्र जिमावै ॥


निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी ।

पुत्र देहिं ता कहँ गुणखानी ॥


ध्वजा नारियल आन चढ़ावै ।

विधि समेत पूजन करवावै ॥


नित प्रति पाठ करै मन लाई ।

प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥


यह श्री विन्ध्याचल चालीसा ।

रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥


यह जन अचरज मानहु भाई ।

कृपा दृश्टि जापर होइ जाई ॥


जै जै जै जग मातु भवानी ।

कृपा करहु मोहि निज जन जानी ॥ 40



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मां सरस्वती देवी चालीसा


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⚜️दोहा⚜️


जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धारि।


बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥


पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।


दुष्टजनों के पाप को, मातु तू ही अब हन्तु॥



🔱 चौपाई 🔱


जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।

जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥

जय जय जय वीणाकर धारी।

करती सदा सुहंस सवारी॥


रूप चतुर्भुज धारी माता।

सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती।

तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥


तब ही मातु का निज अवतारी।

पाप हीन करती महतारी॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा।

तव प्रसाद जानै संसारा॥


रामचरित जो रचे बनाई।

आदि कवि की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता।

तेरी कृपा दृष्टि से माता॥


तुलसी सूर आदि विद्वाना।

भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।

केवल कृपा आपकी अम्बा॥


करहु कृपा सोइ मातु भवानी।

दुखित दीन निज दासहि जानी॥

पुत्र करहिं अपराध बहूता।

तेहि न धरई चित माता॥


राखु लाज जननि अब मेरी।

विनय करउं भांति बहु तेरी॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा।

कृपा करउ जय जय जगदंबा॥



मधु-कैटभ जो अति बलवाना।

बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥

समर हजार पांच में घोरा।

फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥


मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।

बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।

पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥


चंड मुण्ड जो थे विख्याता।

क्षण महु संहारे उन माता॥

रक्त बीज से समरथ पापी।

सुरमुनि हृदय धरा सब कांपी॥


काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।

बार-बार बिन वउं जगदंबा॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभ-निशुंभा।

क्षण में बांधे ताहि तू अम्बा॥


भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई।

रामचन्द्र बनवास कराई॥

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।

सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥


को समरथ तव यश गुन गाना।

निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।

जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥


रक्त दन्तिका और शताक्षी।

नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।

दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥


दुर्ग आदि हरनी तू माता।

कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित को मारन चाहे।

कानन में घेरे मृग नाहे॥


सागर मध्य पोत के भंजे।

अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में।

हो दरिद्र अथवा संकट में॥


नाम जपे मंगल सब होई।

संशय इसमें करई न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई।

सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥


करै पाठ नित यह चालीसा।

होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।

संकट रहित अवश्य हो जावै॥


भक्ति मातु की करैं हमेशा।

निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें सत बारा।

बंदी पाश दूर हो सारा॥


रामसागर बांधि हेतु भवानी।

कीजै कृपा दास निज जानी॥


⚜️दोहा⚜️


मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।

डूबन से रक्षा करहु परूं न मैं भव कूप॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।

राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥



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मां गायत्री देवी चालीसा

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⚜️ दोहा ⚜️


ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचंड ॥

शांति कांति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखंड ॥1॥


जगत जननी मंगल करनि गायत्री सुखधाम ।

प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥ २॥


🔱 चौपाई 🔱


भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।

गायत्री नित कलिमल दहनी ॥


अक्षर चौबीस परम पुनीता ।

इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥


शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।

सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥


हंसारूढ श्वेतांबर धारी ।

स्वर्ण कांति शुचि गगन-बिहारी ॥


पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।

शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥


ध्यान धरत पुलकित हित होई ।

सुख उपजत दुख दुर्मति खोई ॥


कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।

निराकार की अद्भुत माया ॥


तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।

तरै सकल संकट सों सोई ॥


सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।

दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥


तुम्हरी महिमा पार न पावैं ।

जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥


चार वेद की मात पुनीता ।

तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥


महामंत्र जितने जग माहीं ।

कोउ गायत्री सम नाहीं ॥


सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।

आलस पाप अविद्या नासै ॥


सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।

कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥


ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।

तुम सों पावें सुरता तेते ॥


तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।

जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥


महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।

जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥


पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।

तुम सम अधिक न जगमें आना ॥


तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।

तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेसा ॥


जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई ।

पारस परसि कुधातु सुहाई ॥


तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।

माता तुम सब ठौर समाई ॥


ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड घनेरे ।

सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥


सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।

पालक पोषक नाशक त्राता ॥


मातेश्वरी दया व्रत धारी ।

तुम सन तरे पातकी भारी ॥


जापर कृपा तुम्हारी होई ।

तापर कृपा करें सब कोई ॥


मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें ।

रोगी रोग रहित हो जावें ॥


दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।

नाशै दुख हरै भव भीरा ॥


गृह क्लेश चित चिंता भारी ।

नासै गायत्री भय हारी ॥


संतति हीन सुसंतति पावें ।

सुख संपति युत मोद मनावें ॥


भूत पिशाच सबै भय खावें ।

यम के दूत निकट नहिं आवें ॥


जो सधवा सुमिरें चित लाई ।

अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥


घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।

विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥


जयति जयति जगदंब भवानी ।

तुम सम ओर दयालु न दानी ॥


जो सतगुरु सो दीक्षा पावे ।

सो साधन को सफल बनावे ॥


सुमिरन करे सुरूचि बडभागी ।

लहै मनोरथ गृही विरागी ॥


अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।

सब समर्थ गायत्री माता ॥


ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।

आरत अर्थी चिंतित भोगी ॥


जो जो शरण तुम्हारी आवें ।

सो सो मन वांछित फल पावें ॥


बल बुधि विद्या शील स्वभाउ ।

धन वैभव यश तेज उछाउ ॥


सकल बढें उपजें सुख नाना ।

जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥


 ⚜️ दोहा ⚜️


यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई ।

तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥



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मां वैष्णो देवी चालीसा


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⚜️दोहा⚜️


गरुड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकुटा पर्वत धाम

काली, लक्ष्मी, सरस्वती, शक्ति तुम्हें प्रणाम


🔱चौपाई🔱


नमो: नमो: वैष्णो वरदानी, कलि काल मे शुभ कल्याणी।

मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी, पिंडी रूप में हो अवतारी॥

देवी देवता अंश दियो है, रत्नाकर घर जन्म लियो है।

करी तपस्या राम को पाऊँ, त्रेता की शक्ति कहलाऊँ॥


कहा राम मणि पर्वत जाओ, कलियुग की देवी कहलाओ।

विष्णु रूप से कल्कि बनकर, लूंगा शक्ति रूप बदलकर॥

तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ, गुफा अंधेरी जाकर पाओ।

काली-लक्ष्मी-सरस्वती माँ, करेंगी पोषण पार्वती माँ॥


ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे, हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे।

रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें, कलियुग-वासी पूजत आवें॥

पान सुपारी ध्वजा नारीयल, चरणामृत चरणों का निर्मल।

दिया फलित वर मॉ मुस्काई, करन तपस्या पर्वत आई॥


कलि कालकी भड़की ज्वाला, इक दिन अपना रूप निकाला।

कन्या बन नगरोटा आई, योगी भैरों दिया दिखाई॥

रूप देख सुंदर ललचाया, पीछे-पीछे भागा आया।

कन्याओं के साथ मिली मॉ, कौल-कंदौली तभी चली मॉ॥


देवा माई दर्शन दीना, पवन रूप हो गई प्रवीणा।

नवरात्रों में लीला रचाई, भक्त श्रीधर के घर आई॥

योगिन को भण्डारा दीनी, सबने रूचिकर भोजन कीना।

मांस, मदिरा भैरों मांगी, रूप पवन कर इच्छा त्यागी॥


बाण मारकर गंगा निकली, पर्वत भागी हो मतवाली।

चरण रखे आ एक शीला जब, चरण-पादुका नाम पड़ा तब॥

पीछे भैरों था बलकारी, चोटी गुफा में जाय पधारी।

नौ मह तक किया निवासा, चली फोड़कर किया प्रकाशा॥


आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी, कहलाई माँ आद कुंवारी।

गुफा द्वार पहुँची मुस्काई, लांगुर वीर ने आज्ञा पाई॥

भागा-भागा भैंरो आया, रक्षा हित निज शस्त्र चलाया।

पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर, किया क्षमा जा दिया उसे वर॥


अपने संग में पुजवाऊंगी, भैंरो घाटी बनवाऊंगी।

पहले मेरा दर्शन होगा, पीछे तेरा सुमिरन होगा॥

बैठ गई माँ पिण्डी होकर, चरणों में बहता जल झर झर।

चौंसठ योगिनी-भैंरो बर्वत, सप्तऋषि आ करते सुमरन॥


घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे, गुफा निराली सुंदर लागे।

भक्त श्रीधर पूजन कीन, भक्ति सेवा का वर लीन॥

सेवक ध्यानूं तुमको ध्याना, ध्वजा व चोला आन चढ़ाया।

सिंह सदा दर पहरा देता, पंजा शेर का दु:ख हर लेता॥


जम्बू द्वीप महाराज मनाया, सर सोने का छत्र चढ़ाया ।

हीरे की मूरत संग प्यारी, जगे अखण्ड इक जोत तुम्हारी॥

आश्विन चैत्र नवरात्रे आऊँ, पिण्डी रानी दर्शन पाऊँ।

सेवक “कमल” शरण तिहारी, हरो वैष्णो विपत हमारी॥


⚜️दोहा⚜️


कलियुग में महिमा तेरी, है माँ अपरंपार

धर्म की हानि हो रही, प्रगट करो अवतार


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मां लक्ष्मी देवी चालीसा

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⚜️दोहा⚜️

 

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।

मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥

 

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।

ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥


⚜️सोरठा⚜️

 

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।

सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥


🔱चौपाई🔱

 

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥


तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥


जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥


तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥



जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥


विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।।


केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥


कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥



ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥


क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥


चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥


जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥



स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥


तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥


अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥


तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥



मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥


तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥


और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥


ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥



त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥


जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥


ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।।


पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥



विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥


पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥


सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥


बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥



प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥


बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥


करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥


जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥



तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥


मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥


भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥


बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥



नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥


रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥


कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥


रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥

 

⚜️दोहा⚜️

 

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास।

जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥

 

रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर।

मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥


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मां काली देवी चालीसा 

देवी चालीसा संग्रह | Unique Devi Chalisa Collection @ 🔱 VrandAstrA 🔱

⚜️दोहा⚜️


जयकाली कलिमलहरण,

महिमा अगम अपार ।

महिष मर्दिनी कालिका,

देहु अभय अपार ॥


🔱चौपाई🔱


अरि मद मान मिटावन हारी ।

मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥

अष्टभुजी सुखदायक माता ।

दुष्टदलन जग में विख्याता ॥


भाल विशाल मुकुट छवि छाजै ।

कर में शीश शत्रु का साजै ॥

दूजे हाथ लिए मधु प्याला ।

हाथ तीसरे सोहत भाला ॥4॥


चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे ।

छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥

सप्तम करदमकत असि प्यारी ।

शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥


अष्टम कर भक्तन वर दाता ।

जग मनहरण रूप ये माता ॥

भक्तन में अनुरक्त भवानी ।

निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥8॥


महशक्ति अति प्रबल पुनीता ।

तू ही काली तू ही सीता ॥

पतित तारिणी हे जग पालक ।

कल्याणी पापी कुल घालक ॥


शेष सुरेश न पावत पारा ।

गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥

तुम समान दाता नहिं दूजा ।

विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥12॥


रूप भयंकर जब तुम धारा ।

दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥

नाम अनेकन मात तुम्हारे ।

भक्तजनों के संकट टारे ॥


कलि के कष्ट कलेशन हरनी ।

भव भय मोचन मंगल करनी ॥

महिमा अगम वेद यश गावैं ।

नारद शारद पार न पावैं ॥16॥


भू पर भार बढ्यौ जब भारी ।

तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥

आदि अनादि अभय वरदाता ।

विश्वविदित भव संकट त्राता ॥


कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा ।

उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥

ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा ।

काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥20॥


कलुआ भैंरों संग तुम्हारे ।

अरि हित रूप भयानक धारे ॥

सेवक लांगुर रहत अगारी ।

चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥


त्रेता में रघुवर हित आई ।

दशकंधर की सैन नसाई ॥

खेला रण का खेल निराला ।

भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥24॥


रौद्र रूप लखि दानव भागे ।

कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥

तब ऐसौ तामस चढ़ आयो ।

स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥


ये बालक लखि शंकर आए ।

राह रोक चरनन में धाए ॥

तब मुख जीभ निकर जो आई ।

यही रूप प्रचलित है माई ॥28॥


बाढ्यो महिषासुर मद भारी ।

पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥

करूण पुकार सुनी भक्तन की ।

पीर मिटावन हित जन-जन की ॥15॥


तब प्रगटी निज सैन समेता ।

नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥

शुंभ निशुंभ हने छन माहीं ।

तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥32॥


मान मथनहारी खल दल के ।

सदा सहायक भक्त विकल के ॥

दीन विहीन करैं नित सेवा ।

पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥


संकट में जो सुमिरन करहीं ।

उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥

प्रेम सहित जो कीरति गावैं ।

भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥36॥


काली चालीसा जो पढ़हीं ।

स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥

दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा ।

केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥


करहु मातु भक्तन रखवाली ।

जयति जयति काली कंकाली ॥

सेवक दीन अनाथ अनारी ।

भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥40॥


⚜️दोहा⚜️


प्रेम सहित जो करे,

काली चालीसा पाठ ।

तिनकी पूरन कामना,

होय सकल जग ठाठ ॥


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मां संतोषी देवी चालीसा 

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⚜️दोहा⚜️


बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार ।

ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार ॥


भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम ।

कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम ॥


🔱चौपाई🔱


जय सन्तोषी मात अनूपम ।

शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥

सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा ।

वेश मनोहर ललित अनुपा ॥


श्‍वेताम्बर रूप मनहारी ।

माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥

दिव्य स्वरूपा आयत लोचन ।

दर्शन से हो संकट मोचन ॥ 4 ॥


जय गणेश की सुता भवानी ।

रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥

अगम अगोचर तुम्हरी माया ।

सब पर करो कृपा की छाया ॥


नाम अनेक तुम्हारे माता ।

अखिल विश्‍व है तुमको ध्याता ॥

तुमने रूप अनेकों धारे ।

को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥ 8 ॥


धाम अनेक कहाँ तक कहिये ।

सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥

विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी ।

कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥


कलकत्ते में तू ही काली ।

दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥

सम्बल पुर बहुचरा कहाती ।

भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥ 12 ॥


ज्वाला जी में ज्वाला देवी ।

पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥

नगर बम्बई की महारानी ।

महा लक्ष्मी तुम कल्याणी ॥


मदुरा में मीनाक्षी तुम हो ।

सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥

राजनगर में तुम जगदम्बे ।

बनी भद्रकाली तुम अम्बे ॥ 16 ॥


पावागढ़ में दुर्गा माता ।

अखिल विश्‍व तेरा यश गाता ॥

काशी पुराधीश्‍वरी माता ।

अन्नपूर्णा नाम सुहाता ॥


सर्वानन्द करो कल्याणी ।

तुम्हीं शारदा अमृत वाणी ॥

तुम्हरी महिमा जल में थल में ।

दुःख दारिद्र सब मेटो पल में ॥ 20 ॥


जेते ऋषि और मुनीशा ।

नारद देव और देवेशा ।

इस जगती के नर और नारी ।

ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी ॥


जापर कृपा तुम्हारी होती ।

वह पाता भक्ति का मोती ॥

दुःख दारिद्र संकट मिट जाता ।

ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता ॥ 24 ॥


जो जन तुम्हरी महिमा गावै ।

ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै ॥

जो मन राखे शुद्ध भावना ।

ताकी पूरण करो कामना ॥


कुमति निवारि सुमति की दात्री ।

जयति जयति माता जगधात्री ॥

शुक्रवार का दिवस सुहावन ।

जो व्रत करे तुम्हारा पावन ॥ 28 ॥


गुड़ छोले का भोग लगावै ।

कथा तुम्हारी सुने सुनावै ॥

विधिवत पूजा करे तुम्हारी ।

फिर प्रसाद पावे शुभकारी ॥


शक्ति-सामरथ हो जो धनको ।

दान-दक्षिणा दे विप्रन को ॥

वे जगती के नर औ नारी ।

मनवांछित फल पावें भारी ॥ 32 ॥


जो जन शरण तुम्हारी जावे ।

सो निश्‍चय भव से तर जावे ॥

तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे ।

निश्चय मनवांछित वर पावै ॥


सधवा पूजा करे तुम्हारी ।

अमर सुहागिन हो वह नारी ॥

विधवा धर के ध्यान तुम्हारा ।

भवसागर से उतरे पारा ॥ 36 ॥


जयति जयति जय संकट हरणी ।

विघ्न विनाशन मंगल करनी ॥

हम पर संकट है अति भारी ।

वेगि खबर लो मात हमारी ॥


निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता ।

देह भक्ति वर हम को माता ॥

यह चालीसा जो नित गावे ।

सो भवसागर से तर जावे ॥ 40 ॥


⚜️दोहा⚜️


संतोषी माँ के सदा बंदहूँ पग निश वास ।

पूर्ण मनोरथ हो सकल मात हरौ भव त्रास ॥



मां गंगा देवी चालीसा 

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⚜️दोहा⚜️


जय जय जय जग पावनी जयति देवसरि गंग ।

जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग ॥



🔱चौपाई🔱


जय जग जननि अघ खानी, 

आनन्द करनि गंग महरानी ।

जय भागीरथि सुरसरि माता, 

कलिमल मूल दलनि विखयाता ।।

 

जय जय जय हनु सुता अघ अननी, 

भीषम की माता जग जननी ।

धवल कमल दल मम तनु साजे, 

लखि शत शरद चन्द्र छवि लाजे ।।

 

वाहन मकर विमल शुचि सोहै, 

अमिय कलश कर लखि मन मोहै ।

जडित रत्न कंचन आभूषण, 

हिय मणि हार, हरणितम दूषण ।।

 

जग पावनि त्रय ताप नसावनि, 

तरल तरंग तंग मन भावनि ।

जो गणपति अति पूज्य प्रधाना, 

तिहुं ते प्रथम गंग अस्नाना ।।

 

ब्रह्‌म कमण्डल वासिनी देवी, 

श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी ।

साठि सहत्र सगर सुत तारयो, 

गंगा सागर तीरथ धारयो ।।

 

अगम तरंग उठयो मन भावन, 

लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन ।

तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट, 

धरयौ मातु पुनि काशी करवट ।।

 

धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी, 

तारणि अमित पितृ पद पीढी ।

भागीरथ तप कियो अपारा, 

दियो ब्रह्‌म तब सुरसरि धारा ।।

 

जब जग जननी चल्यो लहराई, 

शंभु जटा महं रह्‌यो समाई ।

वर्ष पर्यन्त गंग महरानी, 

रहीं शंभु के जटा भुलानी ।।

 

मुनि भागीरथ शंभुहिं ध्यायो, 

तब इक बूंद जटा से पायो ।

ताते मातु भई त्रय धारा, 

मृत्यु लोक, नभ अरु पातारा ।।

 

गई पाताल प्रभावति नामा, 

मन्दाकिनी गई गगन ललामा ।


मृत्यु लोक जाह्‌नवी सुहावनि, 

कलिमल हरणि अगम जग पावनि ।।

 

धनि मइया तव महिमा भारी, 

धर्म धुरि कलि कलुष कुठारी ।

मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनी, 

धनि सुरसरित सकल भयनासिनी ।।

 

पान करत निर्मल गंगाजल, 

पावत मन इच्छित अनन्त फल ।

पूरब जन्म पुण्य जब जागत, 

तबहिं ध्यान गंगा महं लागत ।।

 

जई पगु सुरसरि हेतु उठावहिं, 

तइ जगि अश्वमेध फल पावहिं ।

महा पतित जिन काहु न तारे, 

तिन तारे इक नाम तिहारे ।।

 

शत योजनहू से जो ध्यावहिं, 

निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं ।

नाम भजत अगणित अघ नाशै, 

विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै ।।

 

जिमि धन मूल धर्म अरु दाना, 

धर्म मूल गंगाजल पाना ।

तव गुण गुणन करत सुख भाजत, 

गृह गृह सम्पत्ति सुमति विराजत ।।

 

गंगहिं नेम सहित निज ध्यावत, 

दुर्जनहूं सज्जन पद पावत ।

बुद्धिहीन विद्या बल पावै, 

रोगी रोग मुक्त ह्‌वै जावै ।।

 

गंगा गंगा जो नर कहहीं, 

भूखे नंगे कबहूं न रहहीं ।

निकसत की मुख गंगा माई, 

श्रवण दाबि यम चलहिं पराई ।।

 

महां अधिन अधमन कहं तारें, 

भए नर्क के बन्द किवारे ।

जो नर जपै गंग शत नामा, 

सकल सिद्ध पूरण ह्‌वै कामा ।।

 

सब सुख भोग परम पद पावहिं, 

आवागमन रहित ह्‌वै जावहिं ।

धनि मइया सुरसरि सुखदैनी, 

धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी ।। 

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा, 

सुन्दरदास गंगा कर दासा ।

जो यह पढ़ै गंगा चालीसा, 

मिलै भक्ति अविरल वागीसा ।।

 

⚜️दोहा⚜️

 

नित नव सुख सम्पत्ति लहैं, धरैं, गंग का ध्यान ।

अन्त समय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान ॥

सम्वत्‌ भुज नभ दिशि, राम जन्म दिन चैत्र ।

पूण चालीसा कियो, हरि भक्तन हित नैत्र ॥


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माँ अन्नपूर्णा देवी चालीसा 

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⚜️दोहा⚜️


विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।

अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।।


🔱चौपाई🔱


नित्य आनंद करिणी माता,

वर अरु अभय भाव प्रख्याता ।

जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी,

अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ॥


श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि,

संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ।

काशी पुराधीश्वरी माता,

माहेश्वरी सकल जग त्राता ॥


वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी,

विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ।

पतिदेवता सुतीत शिरोमणि,

पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ॥


पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा,

योग अग्नि तब बदन जरावा ।

देह तजत शिव चरण सनेहू,

राखेहु जात हिमगिरि गेहू ॥


प्रकटी गिरिजा नाम धरायो,

अति आनंद भवन मँह छायो ।

नारद ने तब तोहिं भरमायहु,

ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ॥ 10 ॥


ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये,

देवराज आदिक कहि गाये ।

सब देवन को सुजस बखानी,

मति पलटन की मन मँह ठानी ॥


अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या,

कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ।

निज कौ तब नारद घबराये,

तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ॥


करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ,

संत बचन तुम सत्य परेखेहु ।

गगनगिरा सुनि टरी न टारे,

ब्रहां तब तुव पास पधारे ॥


कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा,

देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ।

तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी,

कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ॥


अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों,

है सौगंध नहीं छल तोसों ।

करत वेद विद ब्रहमा जानहु,

वचन मोर यह सांचा मानहु ॥ 20 ॥


तजि संकोच कहहु निज इच्छा,

देहौं मैं मनमानी भिक्षा ।

सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी,

मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ॥


बोली तुम का कहहु विधाता,

तुम तो जगके स्रष्टाधाता ।

मम कामना गुप्त नहिं तोंसों,

कहवावा चाहहु का मोंसों ॥


दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा,

शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ।

सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये,

कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ॥


तब गिरिजा शंकर तव भयऊ,

फल कामना संशयो गयऊ ।

चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा,

तब आनन महँ करत निवासा ॥


माला पुस्तक अंकुश सोहै,

कर मँह अपर पाश मन मोहै ।

अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे,

अज अनवघ अनंत पूर्णे ॥ 30 ॥


कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ,

भव विभूति आनंद भरी माँ ।

कमल विलोचन विलसित भाले,

देवि कालिके चण्डि कराले ॥


तुम कैलास मांहि है गिरिजा,

विलसी आनंद साथ सिंधुजा ।

स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी,

मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ॥


विलसी सब मँह सर्व सरुपा,

सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ।

जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा,

फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ॥


प्रात समय जो जन मन लायो,

पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ।

स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत,

परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ॥


राज विमुख को राज दिवावै,

जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ।

पाठ महा मुद मंगल दाता,

भक्त मनोवांछित निधि पाता ॥ 40 ॥


⚜️दोहा⚜️


जो यह चालीसा सुभग,

पढ़ि नावैंगे माथ ।

तिनके कारज सिद्ध सब,

साखी काशी नाथ ॥


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मां तुलसी देवी चालीसा 

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⚜️दोहा⚜️


श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।

जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।


🔱चौपाई🔱


नमो नमो तुलसी महारानी, 

महिमा अमित न जाय बखानी।

दियो विष्णु तुमको सनमाना, 

जग में छायो सुयश महाना।।


विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, 

तिहूँ लोक की हो सुखखानी।

भगवत पूजा कर जो कोई, 

बिना तुम्हारे सफल न होई।।


जिन घर तव नहिं होय निवासा, 

उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।

करे सदा जो तव नित सुमिरन, 

तेहिके काज होय सब पूरन।।


कातिक मास महात्म तुम्हारा, 

ताको जानत सब संसारा।

तव पूजन जो करैं कुंवारी, 

पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।


कर जो पूजन नितप्रति नारी, 

सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।

वृद्धा नारी करै जो पूजन, 

मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।


श्रद्धा से पूजै जो कोई, 

भवनिधि से तर जावै सोई।

कथा भागवत यज्ञ करावै, 

तुम बिन नहीं सफलता पावै।।


छायो तब प्रताप जगभारी, 

ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।

तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, 

सकल काज सिधि होवै क्षण में।।


औषधि रूप आप हो माता, 

सब जग में तव यश विख्याता,

देव रिषी मुनि औ तपधारी, 

करत सदा तव जय जयकारी।।


वेद पुरानन तव यश गाया, 

महिमा अगम पार नहिं पाया।

नमो नमो जै जै सुखकारनि, 

नमो नमो जै दुखनिवारनि।।


नमो नमो सुखसम्पति देनी, 

नमो नमो अघ काटन छेनी।

नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, 

नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।


नमो नमो भव पार उतारनि, 

नमो नमो परलोक सुधारनि।

नमो नमो निज भक्त उबारनि, 

नमो नमो जनकाज संवारनि।।


नमो नमो जय कुमति नशावनि, 

नमो नमो सुख उपजावनि।

जयति जयति जय तुलसीमाई, 

ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।


निजजन जानि मोहि अपनाओ, 

बिगड़े कारज आप बनाओ।

करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, 

पूरण आशा करहु हमारी।।


शरण चरण कर जोरि मनाऊं, 

निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।

क्रहु मात यह अब मोपर दाया, 

निर्मल होय सकल ममकाया।।


मंगू मात यह बर दीजै, 

सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।

जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, 

छमहु मात अपराध हमारा।।


बरह मास करै जो पूजा, 

ता सम जग में और न दूजा।

प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, 

फिर सुन्दर स्नान करावे।।


चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, 

धूप दीप नैवेद्य लगावे।

करे आचमन गंगा जल से, 

ध्यान करे हृदय निर्मल से।।


पाठ करे फिर चालीसा की, 

अस्तुति करे मात तुलसा की।

यह विधि पूजा करे हमेशा, 

ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।


करै मास कार्तिक का साधन, 

सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।

है यह कथा महा सुखदाई, 

पढ़े सुने सो भव तर जाई।।


तुलसी मैया तुम कल्याणी, 

तुम्हरी महिमा सब जग जानी।

भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, 

गा गाकर मां तुझे रिझावे।।


⚜️दोहा⚜️ 


यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।

गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।


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खण्ड 4 :


देवी चालीसा संग्रह का पाठ करने से होने वाले लाभ :


देवी चालीसा संग्रह का पाठ करने से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:


धार्मिक और मानसिक लाभ: इस संग्रह का पाठ करने से आध्यात्मिक और मानसिक लाभ होते हैं। इससे मन शांत होता है और मन में सकारात्मक विचारों का उत्पादन होता है। यह मन को तनाव से मुक्त करता है और उसे शांति देता है।


स्वास्थ्य लाभ: इस संग्रह का पाठ करने से शरीर को संतुलित रखने में मदद मिलती है। इससे रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है और शरीर की कोशिकाओं का विकास होता है।


पारिवारिक लाभ: इस संग्रह का पाठ करने से पारिवारिक संबंधों में मेल जुलाव होता है। यह पारिवारिक समूह को अधिक समृद्ध बनाता है और दुर्घटनाओं और संकटों से बचाता है।


इसके अलावा, देवी चालीसा संग्रह के पाठ से धन, समृद्धि, सुख, सम्पत्ति, उत्तरोत्तर प्रतिक्रिया और बढ़ती उमंग की प्राप्ति हो सकती है।


खण्ड 5:


देवी चालीसा संग्रह का उद्देश्यात्मक महत्व:


देवी चालीसा संग्रह का महत्व अनेक अंशों में होता है।

इसका पाठ धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

इसका महत्व निम्नलिखित है:


आध्यात्मिक उद्देश्य: इस संग्रह का पाठ धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह "मां दुर्गा देवी, मां विंध्यवासिनी देवी, मां सरस्वती देवी, मां गायत्री देवी, मां वैष्णो देवी, मां लक्ष्मी देवी, मां काली देवी, मां संतोषी देवी, मां गंगा देवी, मां अन्नपूर्णा देवी, एवं मां तुलसी देवी" के चालीसा का संग्रह है। इन चालीसाओं का पाठ करने से मनुष्य आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव करता है और अपने आत्मा को शुद्ध करता है।


सामाजिक उद्देश्य: इस संग्रह का पाठ सामाजिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। इससे समाज की उन्नति होती है और सामाजिक दृष्टिकोण बढ़ता है। इससे मानव समाज में धार्मिकता की भावना जाग्रत होती है और समाज के लोग एक-दूसरे के साथ मेल-जोल बढ़ा सकते हैं।


मानसिक उद्देश्य: इस संग्रह का पाठ मानसिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। इससे मन शांत होता है और मन में सकारात्मकता आती है और मानसिक स्थिति सुधरती है। यह मानसिक तनाव को कम करता है और मन को शांति देता है। इससे बुरी आदतों और नकारात्मक विचारों से निपटने में मदद मिलती है। यह मन को स्वस्थ और पूर्णतः तत्पर रखता है जिससे व्यक्ति को अधिक सफलता मिलती है।


इसके अलावा, देवी चालीसा संग्रह के पाठ से मन में श्रद्धा का भाव जागृत होता है। यह उन लोगों के लिए भी उपयोगी होता है जो आस्था की कमी महसूस करते हैं। इससे मानसिक रूप से व्यक्ति को स्थायित्व मिलता है और उन्हें अपने जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने में मदद मिलती है।


खण्ड 6:


देवी चालीसा संग्रह का अनुसरण एवं वैदिक विधि:


देवी चालीसा संग्रह का पाठ करने के लिए निम्न विधि का पालन किया जा सकता है:


सबसे पहले, एक शुद्ध और स्वच्छ स्थान पर बैठें।

अपने मन को शांत करने के लिए, कुछ समय ध्यान केंद्रित करें।

फिर आप देवी चालीसा संग्रह की शुरुआत कर सकते हैं।

अपनी अवधि को तय करें और नियमित रूप से पाठ करें।

देवी चालीसा संग्रह को स्वर और उच्चारण में सही रीति से पढ़ने का प्रयास करें।

ध्यान दें कि, आप शब्दों को समझें और उनका अर्थ भी समझने का प्रयास करें।



खण्ड 7:


देवी चालीसा संग्रह के उच्चारण के नियम:


देवी चालीसा संग्रह के उच्चारण के लिए समय का चयन करते समय, आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:


सुबह या शाम का समय: देवी चालीसा संग्रह का उच्चारण सुबह और शाम के समय ज्यादातर लोगों की प्राथमिकता होती है। इन दोनों समयों में मानसिक शांति और स्थिरता होती है जो आपको उच्चारण के लिए अधिक सक्षम बनाती है।


नियमितता: देवी चालीसा संग्रह का उच्चारण नियमितता से किया जाना चाहिए। आप एक निश्चित समय का चयन कर सकते हैं जो आपके रोजमर्रा के कार्यक्रम से मेल खाता हो।


साथी: आप देवी चालीसा संग्रह का उच्चारण अकेले भी कर सकते हैं, लेकिन यदि आपके साथ कोई दूसरा व्यक्ति भी हो जो कि इसे उच्चारित करता हो, तो आपका उच्चारण अधिक सकारात्मक और उत्साहजनक होगा।


स्थान: आपको उच्चारण के समय के लिए एक स्थिर स्थान का चयन करना चाहिए जो आरामदायक हो और कोई भी बाधा न हो। इससे आपका उच्चारण अधिक सकारात्मक और सुखद होगा।


देवी चालीसा संग्रह | Unique Devi Chalisa Collection @ 🔱 VrandAstrA 🔱



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