देवी चालीसा संग्रह | Unique Devi Chalisa Collection @ 🔱 VrandAstrA 🔱

चित्र
देवी चालीसा संग्रह   Unique Devi Chalisa Collection @  🔱 VrandAstrA 🔱 दे वी चालीसा संग्रह : भक्ति और धर्म के प्रचारक परिचय: देवी-देवताओं की पूजा हमारे संस्कार और संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं। भारतीय जीवन में देवियों की उपासना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वे हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की दूत होती हैं। भक्ति और धर्म का संगम, " देव चालीसा संग्रह " एवं " देवी चालीसा संग्रह ", भारतीय जीवन के एक महत्वपूर्ण अंग को दर्शाता है। खण्ड 1: देवी चालीसा संग्रह का महत्व: देवी चालीसा संग्रह का महत्व बहुत अधिक है।  यह हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है जो हमें दिव्यता की ओर ले जाता है। इसका पाठ करना हमारी मनोदशा को शुद्ध, सकारात्मक और शांत बनाता है जो हमें अपने दैनिक जीवन में उन्नति और सफलता प्रदान करता है। इनका पाठ करना हमें शक्ति और उत्साह प्रदान करता है जो हमें अपनी मनोदशा को संतुलित रखने में मदद करता है। इससे हमें आत्मविश्वास मिलता है और हम अपने लक्ष्यों के प्रति उत्सुकता से निरंतर काम करते रहते हैं। देवी चालीसा संग्रह में शामिल देवताओं...

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा) || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा) 

 || ॐ हं हनुमते नमः || 

🔱 VrandAstrA 🔱

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱


श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

ॐ हं हनुमते नमः 


परिचय श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

हनुमान, भगवान श्रीराम के परमभक्त (संस्कृत में हनुमान्),आंजनेय और मारुति के नाम से भी जानते है। सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में एक हैं। वह भगवान शिवजी के सभी अवतारों में सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। 

रामायण के अनुसार वे श्रीराम के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री करवाई और फिर वानरों की मदद से असुरों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।

इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान जी को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मारुत (संस्कृत में मरुत्) का अर्थ हवा है। नन्दन का अर्थ बेटा है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नन्दन" (हवा का बेटा) हैं। 

मान्यता है कि श्री बाला जी महाराज का जन्म हरियाणा के कैथल जिले में हुआ था जिसका प्राचीन नाम कपिस्थल था। इनके पिता वानरों के राजा केसरी थे और इनकी माता का नाम अंजनी था। हनुमान के अलावा राजा केसरी के अन्य पांच पुत्र भी थे जिनका जन्म अंजनी के गर्भ से हुआ था। सभी छ: पुत्रों में हनुमान को राजा केसरी का सबसे बड़ा पुत्र बताया गया है।

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

श्री हनुमान जी

शक्ति, ज्ञान, भक्ति एवं विजय के भगवान, बुराई के सर्वोच्च विध्वंसक, भक्तों के रक्षक 


अन्य नाम

महाबली , महावीर , पवनपुत्र , अंजनीसुत , केसरीनंदन , रामेष्ट , दशग्रीव दर्प: आदि

संबंध

वानर, रुद्र अवतार, राम के भक्त

ग्रह

पृथ्वी

मंत्र

ॐ हं हनुमनते नमः

अस्त्र

गदा , वज्र और ध्वजा

प्रतीक

वानर

दिवस

मंगलवार और शनिवार

वर्ण

लाल और केसरिया

माता-पिता

वायुदेव(आध्यात्मिक पिता)

राजा केसरी (पिता)

अंजना (माता)

भाई-बहन

गतिमान , श्रुतिमान , धृतिमान , केतुमान और मतिमान

संतान

मकरध्वज

सवारी

अज्ञात

शास्त्र

रामायण

महाभारत

त्यौहार

हनुमान जन्मोत्सव

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱



पूर्व जन्म

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

शिवमहापुराण में भगवान शिव के उन्नीस अवतारों का वर्णन है। जिसमें भगवान हनुमान को उनके सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। हनुमान जी के पूर्व जन्म के बारे में महर्षि वाल्मीकि ने मूल रामायण में विस्तारपूर्वक लिखा है। 

कथा के अनुसार, एक बार हनुमान जी को अपना पूर्व जन्म पूछने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने भगवान श्री राम से कहा कि "हे प्रभु आप तो अन्तर्यामी हैं। मुझे मेरा पूर्व जन्म बताने की कृपा करें।" हनुमान की बात सुनकर भक्तवत्सल भगवान श्री रामचन्द्र जी ने कहा कि "हे हनुमान तुम पूर्व जन्म में मेरे और महादेव का मिश्रित अवतार थे।" तुम्हारा आधा शरीर विष्णु का अर्थात् मेरा था और आधा शरीर मेरे आराध्य भगवान भोलेनाथ का। तुमने उस जन्म में महाशनी नामक असुर का वध किया था जिसने ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर अनाकानेक वरदान प्राप्त किए थे। उसकी जटा में विद्युत की शक्ति थी उसने देवराज इन्द्र को बन्दी बनाकर उनके भ्राता वरुण देव की पुत्री से बलपूर्वक विवाह किया था। इसके पश्चात् इन्द्र और उनकी पत्नी शची ने मेरी और महादेव की तपस्या की। जिसके बाद हमने विषकपि रूप लिया और उसमें आधा शरीर मेरा और आधा शरीर महादेव का था। इसके बाद एक ही छलांग में पाताल लोक पहुंचकर तुमने महाशनी का वध कर दिया और उसके बाद विषकपि ने तुम्हारे रूप में जन्म लिया।


नामकरणश्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱


इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु ) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, वानरकुलटिन थोंडईमान, शंकर सुवन आदि।


स्वरूप

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।



त्रयोदश नाम  

(अर्थ एवं महत्व)

हनुमान - जिनकी ठोड़ी टूटी हो

रामेष्ट - श्री राम भगवान के भक्त

उधिकर्मण - उद्धार करने वाले

अंजनीसुत - अंजनी के पुत्र

फाल्गुनसखा - फाल्गुन अर्थात् अर्जुन के सखा

सीतासोकविनाशक - देवी सीता के शोक का विनाश करने वाले

वायुपुत्र - हवा के पुत्र

पिंगाक्ष - भूरी आँखों वाले

लक्ष्मण प्राणदाता - लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले

महाबली - बहुत शक्तिशाली वानर

अमित विक्रम - अत्यन्त वीरपुरुष

दशग्रीव दर्प: - रावण के गर्व को दूर करने वाले

वानरकुलथिन थोंडैमान - वानर के वंशज (तमिल)

हनुमान जी के तेरह नामों का नित्य नियम से पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं।

प्रातः काल उठते ही हनुमान जी के तेरह नामों का 11 बार पाठ करने वाला व्यक्ति दीर्घायु होता है।

दोपहर के समय हनुमान जी के तेरह नामों के पाठ करने से लक्ष्मी जी की प्राप्ति होती हैं। धन-धान्य की वृद्धि होती है और घर में संपन्नता रहती हैं।

संध्याकाल हनुमान जी के तेरह नामों का पाठ करने से पारिवारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

रात को सोते समय हनुमान जी के तेरह नामों का जाप करने से शत्रु का नाश होता है।

मंगलवार को ये तेरह नाम लाल स्याही से भोजपत्र पर लिखकर तावीज बनाकर बाजु पर बांधने से कभी सिर दर्द नहीं होता तथा शनिदेव की साढ़े साती और अढईया से मुक्ति मिलती है।



सूर्य : एक फल 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱


श्री हनुमान जी के जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये वायु भी बहुत तेजी से चलने लगी। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"

राहु की यह बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नि:रोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।



आदिराम की शरण 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

हनुमान जी राम जी को सुप्रीम मानकर भक्ति करते थे।

कबीर के अनुसार, जीवन के अंतिम क्षणों में उन्हें आदिराम के बारे में पता चला तब गुरू शरण में जाकर भक्ति  की और कल्याण की प्राप्ति की।



ग्रन्थ एवं साहित्य 

रामायण

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

रामायण की पांचवीं पुस्तक, सुंदरकांड, हनुमान पर केंद्रित है। असुरराज रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था, जिसके बाद 14 साल के वनवास के आखिरी साल में हनुमान राम से मिलते हैं। अपने भाई लक्ष्मण के साथ, राम अपनी पत्नी सीता को खोज रहे हैं। यह और संबंधित राम कथाएं हनुमान के बारे में सबसे व्यापक कहानियां हैं।

रामायण के कई संस्करण भारत के भीतर मौजूद हैं। ये हनुमान, राम, सीता, लक्ष्मण और रावण के रूपांतर प्रस्तुत करते हैं। वर्ण और उनके विवरण अलग-अलग हैं, कुछ मामलों में काफी महत्वपूर्ण हैं।



महाभारत

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

महाभारत एक और प्रमुख महाकाव्य है जिसमें हनुमान का संक्षिप्त उल्लेख है। पुस्तक 3 में, महाभारत के वाना पर्व, उन्हें भीमसेन के सौतेले बड़े भाई के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो उनसे कैलाश पर्वत पर जाने के दौरान गलती से मिलते हैं। असाधारण ताकत का आदमी भीम, हनुमान की पूंछ को हिलाने में असमर्थ है, जिससे उन्हें एहसास होता है और हनुमान जी की ताकत को स्वीकार करते है। यह कहानी हनुमान चरित्र के प्राचीन कालक्रम से जुड़ी है। यह कलाकृति और राहत का एक हिस्सा भी है जैसे विजयनगर खंडहर।



अन्य साहित्य

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

रामायण और महाभारत के अलावा, हनुमान का उल्लेख कई अन्य ग्रंथों में किया गया है। इनमें से कुछ कहानियाँ पहले के महाकाव्यों में उल्लिखित उनके कारनामों से जुड़ती हैं, जबकि अन्य उनके जीवन की वैकल्पिक कहानियाँ बताती हैं। स्कंद पुराण में रामेश्वरम में हनुमान का उल्लेख है।

शिव पुराण के एक दक्षिण भारतीय संस्करण में, हनुमान को शिव और मोहिनी (विष्णु का महिला अवतार) के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है, या वैकल्पिक रूप से उनकी पौराणिक कथाओं को स्वामी अय्यप्पा के मूल के साथ जोड़ा या विलय कर दिया गया है, जो दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय हैं ।




हनुमान चालीसा

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

16 वीं शताब्दी के भारतीय कवि तुलसीदास ने हनुमान को समर्पित एक भक्ति गीत हनुमान चालीसा लिखा था। उन्होंने हनुमान के साथ आमने-सामने मुलाकात करने का दावा किया। इन बैठकों के आधार पर, उन्होंने रामचरितमानस, रामायण का एक अवधी भाषा संस्करण लिखा।

हनुमान चालीसा, अवधी में लिखी एक काव्यात्मक कृति है, जिसमें प्रभु श्री राम के महान(अनन्य) भक्त हनुमान जी के गुणों एवं कार्यों का चालीस चौपाइयों में वर्णन है। यह अत्यन्त लघु रचना है, जिसमें पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुंदर स्तुति की गई है। इसमें बजरंगबली‍ जी की भावपूर्ण वन्दना तो है ही, प्रभु श्री राम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। 'चालीसा' शब्द से अभिप्राय 'चालीस' (40) का है, क्योंकि इस स्तुति में 40 छन्द हैं (परिचय के 2 दोहों को छोड़कर)। हनुमान चालीसा भगवान हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्तों द्वारा की जाने वाली प्रार्थना हैं, जिसमें 40 पंक्तियाँ होती है। इसलिए इस प्रार्थना को हनुमान चालीसा कहा जाता है। इस हनुमान चालीसा को भक्त तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया है, जिसे बहुत शक्तिशाली माना जाता है।

इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।

वैसे तो पूरे भारत में यह लोकप्रिय है, किन्तु विशेष रूप से उत्तर भारत में यह बहुत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। लगभग सभी हिन्दुओं को यह कण्ठस्थ होती है। सनातन धर्म में हनुमान जी को वीरता, भक्ति और साहस की प्रतिमूर्ति माना जाता है। शिव जी के ११ वे रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंगबली, पवनपुत्र, मारुतीनन्दन, केसरी नन्दन, महावीर,मारुति,पवनसुत आदि नामों से भी जाना जाता है। हनुमान जी को ८ सिद्धि और ९ निधि प्राप्त है | मान्यता है, कि हनुमान जी अजर-अमर हैं, और यह आशीर्वाद माता सीता और भगवान् राम द्वारा दिया गया था | हनुमान जी का प्रतिदिन ध्यान करने और उनके मन्त्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं। कहा जाता है, कि हनुमान चालीसा के पाठ से भय दूर होता है, क्लेश मिटते हैं। इसके गम्भीर भावों पर विचार करने से मन में श्रेष्ठ ज्ञान के साथ भक्तिभाव जागृत होता है।



चालीसा इतिहास 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

हनुमान चालीसा के लेखक का श्रेय तुलसीदास को दिया जाता है, जो एक कवि-संत थे, जो 16 वीं शताब्दी में सोरोन में रहते थे। उन्होंने भजन के अंतिम श्लोक में अपने नाम का उल्लेख किया है। हनुमान चालीसा के 39वें श्लोक में कहा गया है कि जो कोई भी हनुमान जी की भक्ति के साथ इसका जप करेगा, उस पर हनुमान जी की कृपा होगी। विश्व भर के हिंदुओं में, यह एक बहुत लोकप्रिय मान्यता है कि चालीसा का जाप गंभीर समस्याओं में हनुमान जी के दिव्य हस्तक्षेप का आह्वान करता है।

रचयिता

गोस्वामी तुलसीदास (१४९७/१५३२-१६२३) एक हिंदू कवि-संत और दार्शनिक थे जो राम के प्रति अपनी भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। कई लोकप्रिय कार्यों के संगीतकार, उन्हें महाकाव्य रामचरितमानस के लेखक के रूप में जाना जाता है, जो स्थानीय अवधी भाषा में रामायण का एक पुनर्लेखन है। तुलसीदास को उनके जीवनकाल में संस्कृत में मूल रामायण के रचयिता वाल्मीकि का अवतार माना जाता था। तुलसीदास अपनी मृत्यु तक वाराणसी नगर में रहे।

              कथा 

"एक बार अकबर ने गोस्वामी जी को अपनी सभा में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ। तब तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान श्री राम केवल अपने भक्तों को ही दर्शन देते हैं। यह सुनते ही अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को कारागार में बंद करवा दिया।[3][4][5]


कारावास में गोस्वामी जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी। जैसे ही हनुमान चालीसा लिखने का कार्य पूर्ण हुआ वैसे ही पूरी फतेहपुर सीकरी को बन्दरों ने घेरकर उस पर धावा बोल दिया । अकबर की सेना भी बन्दरों का आतंक रोकने में असफल रही। तब अकबर ने किसी मन्त्री की परामर्श को मानकर तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त कर दिया। जैसे ही तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त किया गया उसी समय बन्दर सारा क्षेत्र छोड़कर चले गये।"




देवी (शक्ति) संबंधित 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

हनुमान और देवी काली के बीच संबंध का उल्लेख कृतिवसी रामायण में मिलता है। उनकी बैठक रामायण के युधिष्ठिर में माहिरावन की कथा में होती है। माहिरावन रावण का विश्वसनीय मित्र / भाई था। अपने बेटे, मेघनाद के मारे जाने के बाद, रावण ने राम और लक्ष्मण को मारने के लिए पाताललोक के राजा अहिरावण और महिरावण की मदद ली। एक रात, अहिरावण और महिरावण ने अपनी माया का उपयोग करते हुए, विभीषण का रूप धारण किया और राम के शिविर में प्रवेश किया। वहाँ उन्होंने वानर सेना पर निंद्रा मंत्र डाला, राम और लक्ष्मण का अपहरण किया और उन्हें पाताल लोक ले गए। वह देवी के एक अनुगामी भक्त थे और रावण ने उन्हें अयोध्या के बहादुर सेनानियों को देवी को बलिदान करने के लिए मना लिया, जिसके लिए माहिरावन सहमत हुए। हनुमान ने विभीषण से पाताल का रास्ता समझने के बाद अपने प्रभु को बचाने के लिए जल्दबाजी की। अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने मकरध्वज से मुलाकात की, जिन्होंने हनुमान के पुत्र होने का दावा किया, उनके पसीने से पैदा हुआ था जो एक मत्स्य (मछली) द्वारा खाया गया था। हनुमान ने उसे हरा दिया और उसे बांध दिया और अहिरावण व महिरावण के महल के अंदर चले गए। वहाँ उसकी मुलाकात चंद्रसेन से हुई जिसने अहिरावण और महिरावण को मारने के तरीके के बारे में बताया। तब हनुमान ने मधुमक्खी के आकार को छोटा किया और महा-काली की विशाल मूर्ति की ओर बढ़ गए। उसने उसे राम को बचाने के लिए कहा, और भयंकर माता देवी ने हनुमान की जगह ले ली, जबकि वह नीचे फिसल गया था। जब महावीर ने राजकुमार-ऋषियों को झुकने के लिए कहा, तो उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि वे शाही वंश के थे और झुकना नहीं जानते थे। इसलिए जैसे ही अहिरावण माहिरावण उन्हें झुकाने का तरीका दिखाने वाले थे, हनुमान ने अपना पंच-मुख रूप (गरुड़, नरसिंह, वराह, हयग्रीव और स्वयं के सिर के साथ) लिया: प्रत्येक सिर एक विशेष प्रतीक को दर्शाता है। हनुमान साहस और शक्ति, नरसिंह निडरता, गरुड़। जादुई कौशल और नाग के काटने, वराह स्वास्थ्य और भूत भगाने और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति), 5 दिशाओं में 5 तेल के दीपक फूँक दिए और अहिरावण तथा माहिरावण का सिर काट दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। बाद में उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण को अपने कंधों पर लिया और जब उन्होंने श्री राम के बाहर उड़ान भरी तो उन्होंने मकरध्वज को अपनी पूंछ से बंधा देखा। उन्होंने तुरंत हनुमान को उन्हें पाताल का राजा बनाने का आदेश दिया। अहिरावण की कहानी पूरब के रामायणों में अपना स्थान पाती है। यह कृतिबश द्वारा लिखित रामायण के बंगाली संस्करण में पाया जा सकता है। इस घटना के बारे में बात करने वाले मार्ग को 'महिराबोनरपाला' के नाम से जाना जाता है। यह भी माना जाता है कि हनुमान से प्रसन्न होने के बाद, देवी काली ने उन्हें अपने द्वार-पाल या द्वारपाल होने का आशीर्वाद दिया और इसलिए देवी के मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव और हनुमान पाए जाते हैं।


बुद्ध धर्म

हनुमान तिब्बती (दक्षिण-पश्चिम चीन) और खोतानी (पश्चिम चीन, मध्य एशिया और उत्तरी ईरान) रामायण के संस्करणों में एक बौद्ध चमक के साथ दिखाई देते हैं। खोतानी संस्करणों में जातक कथाएँ जैसे विषय होते हैं, लेकिन आमतौर पर हनुमान की कहानी और चरित्र में हिंदू ग्रंथों के समान होते हैं। तिब्बती संस्करण अधिक सुशोभित है, और जाटका चमक को शामिल करने के प्रयासों के बिना। इसके अलावा, तिब्बती संस्करण में, हनुमान जैसे राम और सीता के बीच प्रेम पत्र रखने वाले उपन्यास तत्व दिखाई देते हैं, हिंदू संस्करण के अलावा जिसमें राम सीता को एक संदेश के रूप में उनके साथ शादी की अंगूठी भेजते हैं। इसके अलावा, तिब्बती संस्करण में, राम ने हनुमान को चिट्ठियों के माध्यम से उनके साथ अधिक बार नहीं होने के लिए कहा, जिसका अर्थ है कि बंदर-दूत और योद्धा एक सीखा जा रहा है जो पढ़ और लिख सकता है।


जैन धर्म

विमलसूरि द्वारा लिखे गए रामायण के जैन संस्करण पौमचार्य (जिसे पौमा चारु या पद्मचरित के नाम से भी जाना जाता है) में हनुमान का उल्लेख एक दिव्य वानर के रूप में नहीं, बल्कि एक विद्याधरा (एक अलौकिक प्राणी, जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान में मृगमरीचिका) के रूप में किया गया है। वह पवनगति (पवन देवता) और अंजना सुंदरी के पुत्र हैं। अंजना अपने ससुराल वालों द्वारा निर्वासित होने के बाद, एक जंगल की गुफा में हनुमान को जन्म देती है। उसके मामा ने उसे जंगल से बचाया; अपने विमना पर सवार होते हुए, अंजना गलती से अपने बच्चे को एक चट्टान पर गिरा देती है। हालांकि, चट्टान नदारद होने के बावजूद बच्चा अधूरा रह गया। बच्चे की परवरिश हनुरहा में हुई है।

हिंदू ग्रंथ में प्रमुख अंतर हैं: हनुमान जैन ग्रंथों में एक अलौकिक व्यक्ति हैं, (राम एक पवित्र जैन हैं, जो कभी किसी को नहीं मारते हैं, और यह लक्ष्मण हैं जो रावण को मारते हैं।) हनुमान उनसे मिलने और उनके बारे में जानने के बाद राम के समर्थक बन जाते हैं। रावण द्वारा सीता का अपहरण। वह राम की ओर से लंका जाता है, लेकिन रावण को सीता को छोड़ने के लिए मना नहीं पाता है। अंततः, वह रावण के खिलाफ युद्ध में राम के साथ जुड़ जाता है और कई वीर कर्म करता है। बाद में जैन ग्रंथ, जैसे कि उत्तरपुराण (9 वीं शताब्दी सीई) गुनभद्र और अंजना-पवनंजय (12 वीं शताब्दी सीई), एक ही कहानी बताते हैं।

(जैन रामायण कथा के कई संस्करणों में, हनुमान को समझाने वाले मार्ग हैं, और राम (जैन धर्म में पौमा कहलाते हैं), (इन संस्करणों में हनुमान अंततः सभी सामाजिक जीवन को त्याग कर जैन सन्यासी बन जाते हैं)।


सिख धर्म

सिख धर्म में, हिंदू भगवान राम को श्री राम चंदर के रूप में संदर्भित किया गया है, और एक सिद्ध के रूप में हनुमान की कहानी प्रभावशाली रही है। 1699 में मार्शल सिख खालसा आंदोलन के जन्म के बाद, 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के दौरान, हनुमान खालसा द्वारा श्रद्धा की प्रेरणा और उद्देश्य थे।कुछ खालसा रेजीमेंट हनुमान छवि के साथ युद्ध के मैदान में लाई गईं। हिरदा राम भल्ला द्वारा रचित हनुमान नाटक, और कविकान द्वारा दास गुर कथा जैसे सिख ग्रंथ हनुमान के वीर कर्मों का वर्णन करते हैं।लुई फेनच के अनुसार, सिख परंपरा में कहा गया है कि गुरु गोविंद सिंह हनुमान नाटक के प्रिय पाठक थे।



दक्षिण पूर्व एशियाई ग्रंथ

रामायण के गैर-भारतीय संस्करण मौजूद हैं, जैसे थाई रामाकियन। रामायण के इन संस्करणों के अनुसार, मैकचनु सुवर्णमचा द्वारा जन्मे हनुमान के पुत्र हैं, जब "रावण के महल में आग लगाने के बाद हनुमान उड़ते हैं, अत्यधिक गर्मी से उनका शरीर और समुद्र में गिरने पर उनके पसीने की एक बूंद जो एक शक्तिशाली मछली द्वारा खाई जाती है" उसने स्नान किया और उसने रावण की बेटी मच्चनू को जन्म दिया।

एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि मत्स्यराज (जिसे मकरध्वज या मत्स्यगर्भा के नाम से भी जाना जाता है) नामक एक राक्षसी उनके पुत्र होने का दावा करती है। मत्स्यराज का जन्म इस प्रकार बताया गया है: एक मछली (मत्स्य) को हनुमान के पसीने की बूंदों से लगाया गया था, जब वह समुद्र में स्नान कर रही थी। दक्षिण-पूर्व एशियाई ग्रंथों में हनुमान बर्मीज़ रामायण में विभिन्न तरीकों से उत्तर भारतीय हिंदू संस्करण से भिन्न होते हैं, जैसे कि राम यगन, अलौंग राम थायगिन (अराकानी बोली में), राम वटु और राम थायीन, मलय रामायण, जैसे हिकायत श्री राम। और हिकायत महाराजा रावण, और रामायण जैसे थाई रामायण। हालाँकि, कुछ मामलों में, कहानी के पहलू हिंदू संस्करणों और रामायण के बौद्ध संस्करणों के समान हैं जो भारतीय उपमहाद्वीप में कहीं और पाए जाते हैं। वाल्मीकि रामायण मूल पवित्र ग्रन्थ है; अन्य लोगों को लोक नृत्य की तरह कला प्रदर्शन के लिए कवियों द्वारा संस्करण संपादित किए जाते हैं, रामायण की सच्ची कहानी वाल्मीकि है, ऋषि वाल्मीकि को आदिकवि "पहला कवि" के रूप में जाना जाता है।



श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱



श्री हनुमान वन्दना 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱


ॐ हं हनुमते नमः


अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।


दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।।


सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।


रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥


मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।


वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥



श्री हनुमान चालीसा 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱


श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुर सुधार ।

वर्णौ रघुवर विमल यश जो दायक फल चार ।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।

बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु क्लेश विकार ।।


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर

राम दूत अतुलित बल धामा

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥


महावीर विक्रम बजरंगी

कुमति निवार सुमति के संगी

कंचन बरन बिराज सुबेसा

कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥


हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे

काँधे मूँज जनेऊ साजे

शंकर स्वंय केशरी नंदन

तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥


विद्यावान गुनी अति चातुर

राम काज करिबे को आतुर

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया

राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥


सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा

बिकट रूप धरि लंक जरावा

भीम रूप धरि असुर सँहारे

रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥


लाय सजीवन लखन जियाए

श्री रघुबीर हरषि उर लाए

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥६॥


सहस बदन तुम्हरो जस गावै

अस कहि श्रीपति कंठ लगावै

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा

नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥


यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते

कवि कोविद कहि सके कहाँ ते

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा

राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥


तुम्हरो मंत्र विभीषण माना

लंकेश्वर भये सब जग जाना

युग सहस्त्र योजन पर भानू

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥९॥


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही

जलधि लाँघि गए अचरज नाही

दुर्गम काज जगत के जेते

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥


राम दुआरे तुम रखवारे

होत न आज्ञा बिनु पैसारे

सब सुख लहै तुम्हारी सरना

तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥


आपन तेज सम्हारो आपै

तीनों लोक हाँक ते काँपै

भूत पिशाच निकट नहि आवै

महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥


नासै रोग हरे सब पीरा

जपत निरंतर हनुमत बीरा

संकट से हनुमान छुडावै

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥


सब पर राम राज सिर ताजा

तिनके काज सकल तुम साजा


और मनोरथ जो कोई लावै

सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥


चारों युग प्रताप तुम्हारा

है परसिद्ध जगत उजियारा

साधु संत के तुम रखवारे

असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस बर दीन जानकी माता

राम रसायन तुम्हरे पासा

सादर हो रघुपति के दासा ॥१६॥


तुम्हरे भजन राम को पावै

जनम जनम के दुख बिसरावै

अंतकाल रघुवरपुर जाई

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥


और देवता चित्त न धरई

हनुमत सेई सर्व सुख करई

संकट कटै मिटै सब पीरा

जो सुमिरै हनुमत बलवीरा ॥१८॥


जै जै जै हनुमान गोसाईं

कृपा करहु गुरु देव की नाई

यह सत बार पाठ कर जोई

छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥


जो यह पढ़े हनुमान चालीसा

होय सिद्धि साखी गौरीसा

तुलसीदास सदा हरि चेरा

कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥


पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥


श्री राम जय राम, जय जय राम

जय जय श्री राम






श्री बजरंग बाण 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱


निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥


 

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥

जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥


जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥


अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥

जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥


ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥

जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥

भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥


इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥

सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥


बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥

जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥

चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥


उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥

अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥


यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥

पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥

धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥ 


 

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।

बाधा सब हर, करैं सब, काम सफल हनुमान॥




संकटमोचन हनुमानाष्टक 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱


बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारो ।

ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ॥

देवन आन करि बिनती तब, छांड़ि दियो रबि कष्ट निवारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 1 ॥


बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,जात महाप्रभु पंथ निहारो ।

चौंकि महा मुनि शाप दिया तब,चाहिय कौन बिचार बिचारो ॥

के द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,सो तुम दास के शोक निवारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥2॥


अंगद के संग लेन गये सिय,खोज कपीस यह बैन उचारो ।

जीवत ना बचिहौ हम सो जु,बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो ॥

हेरि थके तट सिंधु सबै तब,लाय सिया-सुधि प्राण उबारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥3॥


रावन त्रास दई सिय को सब,राक्षसि सों कहि शोक निवारो ।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु,जाय महा रजनीचर मारो ॥

चाहत सीय अशोक सों आगि सु,दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥4॥


बाण लग्यो उर लछिमन के तब,प्राण तजे सुत रावण मारो ।

लै गृह बैद्य सुषेन समेत,तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ॥

आनि सजीवन हाथ दई तब,लछिमन के तुम प्राण उबारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥5॥


रावण युद्ध अजान कियो तब,नाग कि फांस सबै सिर डारो ।

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,मोह भयोयह संकट भारो ॥

आनि खगेस तबै हनुमान जु,बंधन काटि सुत्रास निवारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥6॥


बंधु समेत जबै अहिरावन,लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।

देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि,देउ सबै मिति मंत्र बिचारो ॥

जाय सहाय भयो तब ही,अहिरावण सैन्य समेत सँहारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥7॥


काज किये बड़ देवन के तुम,वीर महाप्रभु देखि बिचारो ।

कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,जो कछु संकट होय हमारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥॥ 



लाल देह लाली लसे,अरू धरि लाल लंगूर । 

बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ॥







श्री हनुमान जी की आरती 

श्री हनुमान जी (सम्पूर्ण कथा)  || ॐ हं हनुमते नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱


आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।

जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।

अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।

दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।

लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।

पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।

बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।

सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।

लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।

जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।।

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।


🏹

इन्हें भी देखें .....

जय श्री राम


📧 : vranda1learning@gmail.com  

🌐 : www.vrandastra.blogspot.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्री राम जी (सम्पूर्ण कथा) || ॐ रां रामाय नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱

श्री गणेश जी (सम्पूर्ण कथा) || ॐ गं गणपतए नमः || 🔱 VrandAstrA 🔱